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अटल भूजल योजना एवं भूजल प्रबंधन | Atal Bhujal Yojana UPSC

 Atal Bhujal Yojana UPSC in Hindi

अटल भूजल योजना:

  • परिचय:
    • अटल जल एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसका उद्देश्य  6000 करोड़. रुपए के परिव्यय के साथ स्थायी भूजल प्रबंधन की सुविधा प्रदान करना है।
    • इसका कार्यान्वन जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
      • विश्व बैंक और भारत सरकार योजना के वित्तपोषण के लिये 50:50 के अनुपात का योगदान दे रहे हैं।
      • विश्व बैंक का संपूर्ण ऋण राशि और केंद्रीय सहायता राज्यों को अनुदान के रूप में दी जाएगी। 
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य चिन्हित राज्यों में संबंधित जल संकट वाले क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करना है। ये राज्य गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं।
    • अटल जल मांग-पक्ष प्रबंधन पर प्राथमिक केंद्र के साथ पंचायत के नेतृत्व वाले भूजल प्रबंधन और व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करेगा।

भारत में भूजल की कमी की स्थिति:

  • भारत में भूजल की कमी एक गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यह पेयजल का प्राथमिक स्रोत है। भारत में भूजल की कमी के कुछ मुख्य कारणों में सिंचाई, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन शामिल है।
  • हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में भूजल का सबसे अधिक उपयोग भारत द्वारा किया जाता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के संयुक्त भूजल के उपयोग से भी अधिक है।
  • भारत के केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB) के अनुसार, भारत में उपयोग किये जाने वाले कुल जल का लगभग 70% भूजल स्रोतों से प्राप्त होता है। 
    • हालाँकि CGWB का यह भी अनुमान है कि देश के कुल भूजल निष्कर्षण का लगभग 25% असंवहनीय है, अर्थात पुनर्भरण की तुलना में निष्कर्षण दर अधिक है।
  • समग्र रूप से भारत में भूजल की कमी एक गंभीर समस्या है जिसे बेहतर सिंचाई तकनीकों जैसे संवहनीय जल प्रबंधन अभ्यासों और संरक्षण प्रयासों के माध्यम से उजागर करने की आवश्यकता है।

भारत में भूजल की कमी के प्रमुख कारण:

  • सिंचाई के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन: 
    • भारत में कुल जल उपयोग में सिंचाई की हिस्सेदारी लगभग 80% है और इसमें से अधिकांश जल भूमि से प्राप्त होता है।
    • खाद्यान्न की बढ़ती मांग के साथ सिंचाई हेतु भूजल का अधिकाधिक निष्कर्षण किया जा रहा है, जिससे इसके स्तर में कमी आ रही है।
      • संयुक्त राष्ट्र की इंटरकनेक्टेड डिज़ास्टर रिस्क रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, पंजाब में 78% कुओं को अतिदोहित घोषित किया गया है और पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में वर्ष 2025 तक गंभीर रूप से अल्प भूजल उपलब्धता का अनुमान है।
  • जलवायु परिवर्तन: 
    • बढ़ते तापमान एवं वर्षण के बदलते प्रतिरूप भूजल जलभृतों (Groundwater Aquifers) की पुनर्भरण दरों को परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे भूजल स्तर में और कमी आ सकती है।
    • सूखा, फ्लैश फ्लड और बाधित मानसूनी घटनाएँ जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के हालिया उदाहरण हैं जो भारत के भूजल संसाधनों पर दबाव बढ़ा रहे हैं।
  • अव्यवस्थित जल प्रबंधन:
    • जल का कुशलता से उपयोग न करना, जल के पाइपों का फटना और वर्षा जल को एकत्र करने तथा उसके भंडारण हेतु असुरक्षित बुनियादी ढाँचा, ये सभी भूजल की कमी में योगदान कर सकते हैं।
  • प्राकृतिक पुनर्भरण में कमी:
    • वनों की कटाई जैसे कारकों से भूजल जलभृतों का प्राकृतिक पुनर्भरण कम हो सकता है, जिससे मृदा का क्षरण हो सकता है और भूमि में रिसने तथा जलभृतों को फिर सक्रिय करने में सक्षम जल की मात्रा कम हो सकती है।

घटते भूजल से जुड़े मुद्दे: 

  • जल की कमी: जैसे-जैसे भूजल स्तर गिरता है, घरेलू, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिये पर्याप्त जल की उपलब्धता कम होती है। इससे जल की कमी हो सकती है और जल संसाधनों के लिये संघर्ष हो सकता है।
    • मिशिगन विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि भारतीय किसान वर्तमान दर पर भूमि से भूजल खींचना जारी रखते हैं, तो वर्ष 2080 तक भूजल की कमी की दर तीन गुना हो सकती है। इससे देश की खाद्य और जल सुरक्षा के साथ-साथ एक तिहाई से अधिक आबादी की आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • भूमि धँसाव/अवतलन: जब भूजल निष्कर्षण किया जाता है, तो मिट्टी संकुचित हो सकती है, जिससे भूमि धँसाव/अवतलन की घटना हो सकती है। इससे सड़कों और इमारतों जैसे बुनियादी ढाँचे को नुकसान हो सकता है तथा बाढ़ का खतरा भी बढ़ सकता है।
  • पर्यावरणीय क्षरण: घटते भूजल का पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिये, जब भूजल स्तर गिरता है, तो यह तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल के प्रवेश का कारण बन सकता है, जिससे अलवणीय जल के स्रोत प्रदूषित हो सकते हैं।
  • आर्थिक प्रभाव: भूजल की कमी का आर्थिक प्रभाव भी हो सकता है, क्योंकि इससे कृषि उत्पादन कम हो सकता है और जल उपचार व पंपिंग की लागत बढ़ सकती है।
  • क्षरण के आंकड़ों का अभाव: भारत सरकार जल संकट वाले राज्यों में अत्यधिक दोहन वाले ब्लॉकों को "अधिसूचित" करके भूजल दोहन को नियंत्रित करती है।
    • हालाँकि वर्तमान में केवल 14% अतिदोहित ब्लॉक ही अधिसूचित हैं।
  • पृथ्वी की धुरी का झुकाव: जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में एक हालिया अध्ययन के अनुसार, यह दावा किया गया है कि भूजल के अत्यधिक निष्काषन के कारण वर्ष 1993 और वर्ष 2010 के बीच पृथ्वी की धुरी लगभग 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर झुक गई है जो समुद्र के जलस्तर में वृद्धि में योगदान देती है।

भू-जल संरक्षण से संबंधित सरकारी पहल:

आगे की राह

  • व्यापक और टिकाऊ जल प्रबंधन रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है जो तात्कालिक ज़रूरतों एवं दीर्घकालिक चुनौतियों दोनों का समाधान करती हैं।
  • जल प्रबंधन निर्णयों में उनके दृष्टिकोण और ज्ञान को सम्मिलित करते हुए, स्थानीय समुदायों के साथ सार्थक जुड़ाव को बढ़ावा देना।
  • भविष्य में जल संकट के खिलाफ उचित प्रबंधन के लिये जल बुनियादी ढाँचे और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में निवेश को प्राथमिकता दें।
  • जल प्रबंधन पहल की प्रभावशीलता और प्रभाव का आकलन करने के लिये मज़बूत निगरानी और मूल्यांकन ढाँचे की स्थापना करने की आवश्यकता है।
  • भावी पीढ़ियों के लिये जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार भू-जल प्रबंधन और संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देना।
FAQ:

Question: अटल भूजल योजना क्या है?
Answer: अटल जल एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसका उद्देश्य  6000 करोड़. रुपए के परिव्यय के साथ स्थायी भूजल प्रबंधन की सुविधा प्रदान करना है।

Question: अटल भूजल योजना की शुरुआत कब हुई?
Answer: अटल भू-जल योजना 1 अप्रैल 2020 को शुरू की गई थी। 

Question: अटल भुजल योजना के क्या फायदे हैं?
Answer: जल प्रबंधन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हुए, अटल भूजल योजना का उद्देश्य लिंग आधारित भेदभाव को कम करना है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को स्थायी भूजल प्रबंधन में योगदान करने और उससे लाभ उठाने के समान अवसर हैं।

Source: DRISHTI IAS

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