हाँ, मैंने प्रकृति को ढलते देखा है

हाँ, मैंने प्रकृति को ढलते देखा है,
हांथों की जीवन रेखा को बदलते देखा है,
जो कल को आजाद परिंदे की तरह थे,
आज उनको पिंजरे में तड़पते देखा है,
हाँ, मैंने प्रकृति को ढलते देखा है।
मैंने बादल को घिरते देखा है,
चिड़ियों को चहकते देखा है,
सागर की लहरों को मचलते देखा है,
इस परिंदे ने प्रकृति को किया अनदेखा है,
हाँ, मैंने प्रकृति को ढलते देखा है।
मैंने फूलों को महकते देखा है,
नदियों को बहते देखा है,
उपवनों की सुंदरता को निखरते देखा है,
हम सब ने प्रकृति के साथ किया धोखा है,
हाँ, मैंने प्रकृति को ढलते देखा है।
मैंने आंसुओं को बहते देखा है,
प्यासों को सड़कों पर चलते देखा है,
मानवता को घुट-घुट कर मरते देखा है,
लोगों को सिर्फ हिन्दू-मुसलमां करते देखा है,
हाँ, मैंने प्रकृति को ढलते देखा है।
-: शिवम् मिश्रा
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