Sahitya Samagam provides Poems, Education, Technology, Health, News, Facts, Quotes, Jobs, Career, Sarkari Yojana and Stories related articles and News.

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 | GNCTD (Amendment) Act 2021

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 | GNCTD Act 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजधानी दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने संबंधी दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम [Government of National Capital Territory of Delhi (Amendment) Act], 2021 लागू कर दिया गया है।

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 | GNCTD Act 2021
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 | GNCTD Act 2021

प्रमुख बिंदु

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान:

  • यह अधिनियम वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 21, 24, 33 और 44 में संशोधन करता है।
  • इसके तहत दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ‘सरकार’ का आशय उप-राज्यपाल से होगा।
  • यह अधिनियम उन मामलों में भी उपराज्यपाल को विवेकाधीन अधिकार देता है जिन  मामलों में दिल्ली की विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है।
  • यह विधेयक सुनिश्चित करता है कि मंत्रिपरिषद (अथवा दिल्ली मंत्रिमंडल) द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को लागू करने से पूर्व उपराज्यपाल को अपनी ‘राय देने हेतु उपयुक्त अवसर प्रदान किया जाए।
  • यह विधानसभा या उसकी समितियों को दैनिक प्रशासन से संबंधित मामलों को उठाने या प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में पूछताछ करने के लिये नियम बनाने से रोकता है।
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 | GNCTD Act 2021

आलोचना:

  • इस नए संशोधन से दिल्ली सरकार की कार्यक्षमता प्रभावित होगी, क्योंकि अब किसी तत्काल कार्रवाई के समय भी उपराज्यपाल से परामर्श लेना अनिवार्य होगा।
  • गौरतलब है कि उपराज्यपाल राज्य सरकार को एक निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी राय देने के लिये बाध्य नहीं है। आलोचकों का तर्क है कि उपराज्यपाल सरकार के प्रशासनिक कार्यों में बाधा डालने हेतु इन शक्तियों का राजनीतिक रूप से दुरुपयोग कर सकता है।
  • यह संघवाद (Federalism) की भावना के विरुद्ध है।

केंद्र सरकार का पक्ष:

  • यह संशोधन सर्वोच्च न्यायालय के जुलाई 2018 के निर्णय के अनुरूप में है, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल की शक्तियों को स्पष्ट किया गया था।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य सार्वजनिक जवाबदेही को बढ़ावा देना और रोज़मर्रा के प्रशासन से संबंधित तकनीकी अस्पष्टताओं को दूर करना है।
  • इससे दिल्ली की प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी और कार्यपालिका तथा विधायिका के बीच बेहतर संबंध सुनिश्चित हो सकेंगे।

पृष्ठभूमि

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1991

  • इसे वर्ष 1991 में विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मंत्रिपरिषद से संबंधित संविधान के प्रावधानों के पूरक के रूप में लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम ने दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार के गठन की प्रक्रिया को सक्षम किया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में वर्ष 1991 के अधिनियम की सराहना करते हुए कहा था कि संविधान (69वाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 का वास्तविक उद्देश्य एक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि सरकार का गठन सुनिश्चित करना है, जिसमें आम लोगों को प्रदेश से संबंधित कानूनों पर अपनी राय देने का अधिकार हो, हालाँकि यह संपूर्ण प्रक्रिया संविधान में निर्धारित नियमों के अधिक होगी।

69वाँ संशोधन अधिनियम, 1992

  • इस संशोधन के द्वारा संविधान में दो नए अनुच्छेद 239AA और 239AB जोड़े गए, जिसके अंतर्गत केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया।
  • अनुच्छेद 239AA के अंतर्गत केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ बनाया गया और इसके प्रशासक को उपराज्यपाल (Lt. Governor) नाम दिया गया।
    • दिल्ली के लिये विधानसभा की व्यवस्था की गई जो पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था के अतिरिक्त राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
    • यह दिल्ली के लिये एक मंत्रिपरिषद का भी प्रावधान करता है, जिसमें मंत्रियों की कुल संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 10% से अधिक नहीं होगी।
  • अनुच्छेद 239AB के मुताबिक, राष्ट्रपति अनुच्छेद 239AA के किसी भी प्रावधान या इसके अनुसरण में बनाए गए किसी भी कानून के किसी भी प्रावधान के संचालन को निलंबित कर सकता है। यह प्रावधान अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) जैसा है।

टकराव के प्रमुख बिंदु:

  • राजधानी दिल्ली में सत्ता के बंटवारे को लेकर कई वर्षों से मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच तनातनी बनी हुई थी।
  • इन टकराओं का केंद्र बिंदु यह था कि किसी भी मामले पर उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच मतभेद होने पर,
    • उपराज्यपाल द्वारा संबंधित मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता था,
    • और लंबित मामले की स्थिति में उपराज्यपाल को अपने विवेक के मुताबिक, उस मामले पर कार्रवाई करने का अधिकार था।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ और अन्य (2018) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि:
    • सरकार अपने निर्णयों पर उपराज्यपाल की सहमति लेने के लिये बाध्य नहीं है।
    • दोनों पक्षों के बीच किसी भी मतभेद को प्रतिनिधि सरकार और सहकारी संघवाद की संवैधानिक प्रधानता को ध्यान में रखते हुए हल किया जाना चाहिये।
  • इस निर्णय ने उपराज्यपाल के लिये राष्ट्रपति के पास किसी मामलों को भेजना बेहद कठिन बना दिया था।

स्रोत: द हिंदू, DRISTI IAS

,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Please do not enter any spam link in the comment box.