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सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 | Information Technology Rules-2021

सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 | Information Technology Rules-2021 

संदर्भ

भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 को फरवरी 2021 में अधिसूचित किया। इस नियम के तहत सोशल मीडिया मध्यस्थों या प्लेटफॉर्म को तीन महीने के अंदर नियमों का पालन करना आवश्यक था, जिसकी अंतिम तिथि 25 मई को थी।

सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 | Information Technology Rules-2021

  • अब तक लगभग सभी प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों ने सभी पूर्व आवश्यक शर्तों का पालन नहीं किया है।
  • इन शर्तों का अनुपालन न करने से स्थितियाॅं केवल बिगड़ सकती हैं, खासकर ऐसी स्थिति में जिसमें ट्विटर और सरकार जैसे कुछ प्लेटफॉर्म के मध्य संबंध बिगड़ रहे हैं।
  • जबकि उक्त दिशानिर्देशों के कुछ सकारात्मक पहलू हैं, तो कुछ स्पष्ट अस्पष्टताएँ और सीमाएँ हैं जो लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के मूल सिद्धांतों के विपरीत प्रतीत होती हैं।

सकारात्मक पहलू

  • ये नियम कुछ कर्तव्यों को अनिवार्य बनाते हैं जैसे:
    • 24 घंटे के भीतर गैर-सहमति वाली अंतरंग तस्वीरों को हटाना,
    • पारदर्शिता बढ़ाने के लिये अनुपालन रिपोर्ट का प्रकाशन,
    • सामग्री हटाने के लिये विवाद समाधान तंत्र स्थापित करना,
    • उपयोगकर्त्ताओं को यह जानने के लिये जानकारी में एक लेबल जोड़ना कि सामग्री विज्ञापित, स्वामित्व, प्रायोजित या विशेष रूप से नियंत्रित है या नहीं।

इससे जुड़ी चुनौतियाॅं

  • ऐसे अधिकार जो आईटी अधिनियम के दायरे से परे है: यह चिंता का विषय है कि बिना विधायी कार्रवाई के सूचना एवं प्रौद्योगिकी (Information Technology) अधिनियम, 2000 के दायरे का विस्तार कर डिजिटल समाचार मीडिया को इसके अंतर्गत ला दिया गया है।
    • ऐसे कई नए नियमों को लाने के कारण इसकी आलोचना की गई है, जिन्हें सामान्य रूप से केवल विधायी कार्रवाई के माध्यम से लाया जाना चाहिये।
  • उचित रूप से मध्यस्थता या विवाद निवारण तंत्र का न होना: किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अब सरकार से आदेश प्राप्त होने के 36 घंटे के भीतर सामग्री को हटाना होगा।
    • एक समय-सीमा के अंदर सरकार के आदेश से असहमत होने की स्थिति में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को उचित रूप से मध्यस्थता का कोई प्रावधान नहीं है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दे: इन नियमों के तहत ऑनलाइन आपत्तिजनक सामग्री का अंतिम निर्णायक सरकार है। अतः इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। 
  • ट्रेसबिलिटी (Traceability) का मुद्दा: अब तक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के पास यह अधिकार है कि उपयोगकर्त्ताओं को एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (End to End Encryption) की सुविधा प्राप्त होती है, जिससे बिचौलियों के पास उनकी जानकारी नहीं पहुॅंचती है।
    • ट्रेसबिलिटी की इस अनिवार्य आवश्यकता को लागू करने से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का यह अधिकार समाप्त हो जाएगा, जिससे इन वार्तालापों की गोपनीयता की सुरक्षा कम हो जाएगी।
  • डेटा गोपनीयता कानून की अनुपस्थिति: डेटा गोपनीयता कानून का न होना उस देश में घातक साबित हो सकता है जहाॅं नागरिकों के पास अभी भी किसी भी पार्टी द्वारा गोपनियता भंग करने के पश्चात् खुद को बचाने के लिये डेटा गोपनीयता कानून नहीं है।
  • अनुपालन बोझ: ये नियम मध्यस्थों के लिये भारतीय नोडल अधिकारियों, अनुपालन अधिकारियों और शिकायत अधिकारियों को काम पर रखने की आवश्यकता के कारण निरर्थक अतिरिक्त परिचालन लागत पैदा करते हैं।
    • यह कई छोटी डिजिटल संस्थाओं के पक्ष में नहीं हो सकता है और सभी प्रकार के हस्तक्षेपों की संभावना बढ़ सकती है।

आगे की राह

  • कानून का एक समान अनुप्रयोग: कानून के अनुप्रयोग सभी के लिये एक समान होगा। कोई भी प्लेटफार्म इसका अपवाद नहीं होगा। 
    • इसके अलावा गैरकानूनी सामग्री से निपटने के लिये कानून पहले से ही मौजूद हैं। आवश्यकता है उनके एकसमान अनुप्रयोग की।
  • हितधारकों के साथ विचार-विमर्श: नए नियमों के साथ कई समस्याएँ हैं, लेकिन प्रमुख मुद्दा यह था कि इन्हें बिना किसी सार्वजनिक चर्चा के पेश किया गया था। इसके समाधान का बेहतर तरीका है कि इससे जुड़ा एक श्वेत पत्र पुनः जारी किया जाना चाहिये।
  • वैधानिक समर्थन: उसके बाद भी यदि इसका विनियमन आवश्यक समझा जाता है तो इसे कानून के माध्यम से लागू किया जाना चाहिये। इसके लिये कार्यकारी शक्तियों पर भरोसा करने के बजाय संसद में के ज़रिये लाया जाना चाहिये।
  • डेटा संरक्षण कानून में मजबूती लाना: किसी भी प्लेटफॉर्म के साथ अधिक जानकारी साझा करना उस देश में खतरनाक साबित हो सकता है जहाॅं नागरिकों के पास अभी भी किसी भी पार्टी द्वारा गोपनीयता भंग करने पर खुद को बचाने के लिये डेटा गोपनीयता कानून नहीं है।
    • इस संदर्भ में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को जल्द पारित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

जीवन बीमा निगम बनाम प्रो. मनुभाई डी. शाह (1992) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता को किसी भी लोकतांत्रिक संस्था की जीवन रेखा बताया था। 

इस संदर्भ में सीआईआई, फिक्की और यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल सहित पाॅंच औद्योगिक निकायों ने इन नियमों के अनुपालन करने की समय सीमा को 6-12 महीने विस्तृत करने की मांग की है। यह सरकार के लिये औद्योगिक इकाई की बात सुनने और बिना बीच का रास्ता निकाले नियम बनाने के अपने तरीके को बदलने का एक अवसर है।

अभ्यास प्रश्न: हालाॅंकि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के कुछ सकारात्मक पहलू हैं किंतु इसके साथ ही कुछ अस्पष्टताएँ एवं सीमाएँ भी हैं। चर्चा कीजिये।

Source: DRISTI IAS

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