Hume kuch pta nahin hai hmm kyon bahak rahe hain Poem By Vishnu saxena | Vishnu Saxena ki Kavita | Vishnu Saxena ki Shayari | Vishnu Saxena Poetry
हमें कुछ पता नहीं है हम क्यूं बहक रहे हैं Poem By Vishnu saxena |
हमें कुछ पता नहीं है हम क्यूं बहक रहे हैं
हमें कुछ पता नहीं है हम क्यूं बहक रहे हैं
रातें सुलग रही हैं दिन भी दहक रहे हैं
जब से है तुमको देखा हम इतना जानते हैं
तुम भी महक रहे हो हम भी महक रहे हैं
बरसात भी नहीं पर बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई हैं ज़ुल्फ़ें और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भंवरा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो हम भी समझ रहे हैं
अब भी हसीन सपने आंखों में पल रहे हैं
पलकें हैं बंद फिर भी आंसू निकल रहे हैं
नींदें कहां से आएं इस दर पे करवटें हैं
वहां तुम बदल रहे हो यहां हम बदल रहे हैं
डाली से रूठ कर के जिस दिन कली गयी थी
बस उस ही दिन से अपनी क़िस्मत छली गयी थी
अंतिम मिलन समझ कर उसे देखने गया तो
था प्लेटफ़ॉर्म खाली गाड़ी चली गयी थी
हमें कुछ पता नहीं है हम क्यूं बहक रहे हैं
हमें कुछ पता नहीं है हम क्यूं बहक रहे हैं
रातें सुलग रही हैं दिन भी दहक रहे हैं
:- Dr. Vishnu Saxena(विष्णु सक्सेना)
Hume kuch pta nahin hai hmm kyon bahak rahe hain poem By Vishnu saxena | Vishnu Saxena ki Kavita | Vishnu Saxena ki Shayari | Vishnu Saxena Poetry
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