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भारत और आसियान(ASEAN)

संदर्भ

हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific region) में बहुआयामी विकास और हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि में पिछले कुछ दशकों में भारत की विदेश नीति में व्यापक परिवर्तन आया है।

1990 के दशक में ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के साथ शुरुआत करते हुए भारत ने वर्ष 2014 में ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के रूप में अपनी नीति को आगे बढ़ाया है जहाँ वह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) के साथ अपनी साझेदारी को एक कदम और आगे ले जा रहा है, जिसने भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में संभावनाओं की तलाश करने का एक अवसर प्रदान किया है।

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चूँकि कई भू-राजनीतिक चुनौतियाँ मौजूद हैं जो सुचारू भारत-आसियान पारगमन को अवरुद्ध करती हैं, इसलिये यह प्रदर्शित करना महत्त्वपूर्ण है कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ आसियान की संभावनाओं से कैसे संगत होती है और भारत-आसियान संबंधों में विद्यमान चुनौतियों पर कैसे काबू पाती है।

Asian-Grouping

आसियान (ASEAN) क्या है?

यह एक क्षेत्रीय समूह है जो आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देता है। इसकी स्थापना अगस्त 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापकों अर्थात् इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर एवं थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई थी।
  • आसियान 10 देशों का समूह है जिसे दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है।
    • इसमें इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, लाओस, ब्रुनेई, फिलीपींस, सिंगापुर, कंबोडिया, मलेशिया और म्यांमार शामिल हैं।
  • आसियान देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण मिलन-बिंदुओं पर स्थित हैं जो आसियान को क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों, दोनों के लिये एक केंद्र बिंदु बनाता है।

भारत और आसियान के बीच सहयोग के क्षेत्र

  • आर्थिक सहयोग: आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भारत ने आसियान के साथ वर्ष 2009 में वस्तुओं पर और वर्ष 2014 में सेवाओं एवं निवेश पर एक मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement- FTA) पर हस्ताक्षर किये।
    • भारत और आसियान ने एक संयुक्त वक्तव्य भी अंगीकार किया है जहाँ मौजूदा रणनीतिक भागीदारी को व्यापक रणनीतिक भागीदारी (Strategic Partnership to Comprehensive Strategic Partnership) में उन्नत करने की घोषणा की गई है।
  • शांति और सुरक्षा: दोनों पक्षों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और हवाई क्षेत्र से उड़ान भर सकने की स्वतंत्रता को बनाए रखने तथा उसे बढ़ावा देने के महत्त्व की पुष्टि की है।
  • वित्तीय सहायता: भारत आसियान-भारत सहयोग कोष (ASEAN-India Cooperation Fund) और आसियान-भारत ग्रीन फंड जैसे विभिन्न तंत्रों के माध्यम से भारत आसियान देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • कनेक्टिविटी/संपर्क: भारत इस क्षेत्र में भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय (IMT) राजमार्ग और कलादान मल्टीमॉडल परियोजना जैसी कई कनेक्टिविटी परियोजनाएँ कार्यान्वित कर रहा है।
    • भारत और आसियान देशों ने हाल ही में कंबोडिया में आयोजित 19वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में एक व्यापक रणनीतिक भागीदारी (comprehensive strategic partnership) स्थापित कर अपने संबंधों को एक नई ऊर्जा प्रदान की है।

आसियान से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • प्रादेशिक विवाद: आसियान सदस्य देश लंबे समय से इच्छुक शक्तियों के साथ क्षेत्रीय विवादों में उलझे हुए हैं। उदाहरण के लिये, दक्षिण चीन सागर में विभिन्न क्षेत्रों पर चीन के दावों के विरुद्ध ब्रुनेई दारुस्सलाम, मलेशिया, फिलीपींस और वियतनाम के भी अलग-अलग प्रतिस्पर्द्धी दावे मौजूद हैं।
  • हिंद-प्रशांत प्रतिद्वंद्विता: लंबे समय से चीन को प्राथमिक आर्थिक भागीदार और अमेरिका को प्राथमिक सुरक्षा गारंटर के रूप में देखना आसियान संतुलन के केंद्र में रहा है।
    • लेकिन वर्तमान में वह संतुलन बिगड़ रहा है और रूस-यूक्रेन युद्ध ने इस तनाव को और बढ़ा दिया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के तेज़ होने से उस अंतर्निहित स्थिरता को खतरा पहुँच रहा है, जिस पर क्षेत्रीय विकास और समृद्धि टिकी हुई है।
  • अस्थिर भू-अर्थशास्त्र: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव भू-आर्थिक परिणाम उत्पन्न कर रहा है जहाँ व्यापार एवं प्रौद्योगिकीय सहयोग के साथ-साथ आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता के मुद्दे चरम पर हैं।
    • यह परिदृश्य ऐसे समय बन रहा है जब आसियान इन चुनौतियों के प्रबंधन के संबंध में एक आंतरिक रूप से विभाजित संगठन बना हुआ है।
  • भारत-आसियान चुनौती: आसियान देशों के साथ विभिन्न द्विपक्षीय सौदों को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है, जिससे आर्थिक संबंधों के विभिन्न पहलू अवरुद्ध बने हुए हैं।
    • भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी विभिन्न कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिये भारत की प्रतिबद्धता के बावजूद, वे अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। इसके विपरीत, चीन का ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ विभिन्न आसियान देशों का भरोसा प्राप्त कर रहा है।

आगे की राह

  • प्रत्यास्थी आपूर्ति शृंखला का निर्माण: आसियान और भारत के बीच मूल्य शृंखलाओं के संबंध में वर्तमान संलग्नता पर्याप्त नहीं है। आसियान और भारत उभरते हुए परिदृश्य का लाभ उठा सकते हैं तथा नई एवं प्रत्यास्थी आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण के लिये एक दूसरे का समर्थन कर सकते हैं।
    • हालाँकि, इस अवसर का लाभ उठा सकने के लिये आसियान और भारत को अपनी लॉजिस्टिक्स सेवाओं का उन्नयन करना होगा और परिवहन अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना होगा।
  • हिंद-प्रशांत में समुद्री सुरक्षा: हिंद-प्रशांत क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा भारत के साथ-साथ आसियान के हितों की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • दोनों पक्षों को समुद्री पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करने की ज़रूरत है। महासागर की क्षमता का संवहनीय तरीके से दोहन करने के लिये उन्हें प्रबल एवं ज़िम्मेदार पहल करने की आवश्यकता है।
    • इसके साथ ही, आसियान को दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में मौजूद विवादों को हल करने के लिये संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UN Convention for the Law of the Sea-UNCLOS) के सिद्धांतों पर बल देना चाहिये।
  • क्षेत्रीय पर्यटन: भारत और आसियान को क्षेत्रीय पर्यटन तथा लोगों के आपसी संपर्क को बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिये जहाँ पहले से ही एक सभ्यतागत और सांस्कृतिक संबंध मौजूद है।
  • ‘एक्ट-ईस्ट पॉलिसी’ का क्रियान्वयन: साझा चिंताओं पर पारस्परिकता एवं आपसी समझ आसियान और भारत दोनों को कुछ चुनौतियों से उबरने में मदद करेगी।
    • डिजिटलीकरण, फार्मास्यूटिकल्स, कृषि, शिक्षा और हरित विकास के क्षेत्र में समन्वय के माध्यम से भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की क्षमताएँ साकार हो सकेंगी।
  • Source: Drishti IAS
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