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राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021| Rastriya Durlabh Rog Niti 2021

राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021| Rastriya Durlabh Rog Niti 2021 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (National Rare Disease Policy), 2021 को मंज़ूरी दी है।

  • इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र को एक दुर्लभ रोग समिति और निधि की स्थापना करने तथा 31 मार्च, 2021 तक या उससे पहले इसके लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को अंतिम रूप देने एवं अधिसूचित करने का निर्देश दिया था।

प्रमुख बिंदु

लक्ष्य:

  • दवाओं के स्वदेशी अनुसंधान और स्थानीय उत्पादन पर ध्यान बढ़ाना।
  • दुर्लभ रोगों के उपचार की लागत को कम करना।
  • शुरुआती चरणों में दुर्लभ रोगों की स्क्रीनिंग और पता लगाना।

नीति के प्रमुख प्रावधान:

  • वर्गीकरण:
    • इस नीति ने दुर्लभ रोगों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया है:
      समूह 1: एक बार उपचार की आवश्यकता वाले विकार।
      समूह 2: दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता वाले विकार।
      समूह 3: ऐसे रोग जिनके लिये निश्चित उपचार उपलब्ध है, लेकिन इनके उपचार की लागत बहुत अधिक है।
  • वित्तीय सहायता:
    • जो लोग समूह 1 के तहत सूचीबद्ध दुर्लभ रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें राष्ट्रीय आरोग्य निधि (Rashtriya Arogya Nidhi) योजना के अंतर्गत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
      • राष्ट्रीय आरोग्य निधि: इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवनयापन करने वाले ऐसे रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, ताकि वे सरकारी अस्पतालों में उपचार की सुविधा प्राप्त कर सकें। इसके अंतर्गत गंभीर रोगों से ग्रस्त लोगों को सुपर स्पेशिलिटी अस्पतालों/संस्थानों और सरकारी अस्पतालों में उपचार की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। 
    • ऐसी वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिये लाभार्थी बीपीएल परिवारों तक ही सीमित नहीं होंगे, बल्कि इसे लगभग 40% ऐसी आबादी तक बढ़ाया जाएगा जो केवल सरकारी तृतीयक अस्पतालों में इलाज के लिये प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana) के मानदंडों के अनुसार पात्र हैं।

वैकल्पिक निधि:

  • इसमें स्वैच्छिक क्राउडफंडिंग (Crowdfunding) उपचार शामिल है, जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत योगदान के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे- सोशल मीडिया और क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म आदि का उपयोग किया जाता है।

उत्कृष्टता केंद्र:

  • इस नीति का उद्देश्य 'उत्कृष्टता केंद्र' (Centres of Excellence) के रूप में वर्णित 8 स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से दुर्लभ रोगों की रोकथाम और उपचार के लिये तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को मज़बूत बनाना है तथा निदान सुविधाओं में सुधार हेतु 5 करोड़ रुपए तक की एकमुश्त वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाएगी।

राष्ट्रीय रजिस्ट्री:

  •  अनुसंधान और विकास में रुचि रखने वालों के लिये पर्याप्त डेटा सुनिश्चित करने हेतु दुर्लभ रोगों की एक राष्ट्रीय अस्पताल आधारित रजिस्ट्री बनाई जाएगी।

चिंताएँ:

  • स्थायी निधि का अभाव:
    • समूह 1 और समूह 2 के विपरीत समूह 3 वाले रोगियों को स्थायी उपचार सहायता की आवश्यकता होती है।
    • समूह 3 के रोगियों के लिये एक स्थायी वित्तपोषण सहायता की कमी के कारण सभी रोगी जिनमें ज़्यादातर बच्चे शामिल हैं, का जीवन जोखिम में है और क्राउडफंडिंग पर निर्भर है।
  • औषधि निर्माण का अभाव:
    • दवाओं की कम उपलब्धता के कारण इनका मूल्य अपेक्षाकृत अधिक है।
    • वर्तमान में कुछ दवा कंपनियाँ विश्व स्तर पर दुर्लभ बीमारियों उपचार के लिये दवाओं का निर्माण कर रही हैं और भारत में कोई भी घरेलू निर्माता नहीं है सिवाय उन लोगों के जो चयापचय विकार वाले लोगों हेतु चिकित्सा-ग्रेड भोजन बनाते हैं।

दुर्लभ रोग

  • लगभग 6,000-8,000 वर्गीकृत दुर्लभ बीमारियाँ हैं, लेकिन सिर्फ 5% से भी कम का उपचार उपलब्ध है।
    • उदाहरण: लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (Lysosomal Storage Disorder), पोम्पे डिज़ीज़, साइस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis) हीमोफिलिया आदि।

Rare-desease

  • लगभग 95% दुर्लभ बीमारियों का कोई प्रमाणित उपचार उपलब्ध नहीं है और इनसे प्रभावित सिर्फ 10 में से 1 रोगी का ही रोग-विशिष्ट उपचार हो पाता है।
  • इन बीमारियों को विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है और ये प्रति 10,000 आबादी में 1 से 6 लोगों में पाई जाती हैं।
  • हालाँकि सामान्य बीमारियों की तुलना में इनसे बहुत कम लोग प्रभावित होते हैं। फिर भी इनके कई मामले गंभीर, पुराने और जानलेवा हो सकते हैं।
  • भारत में दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित करीब 50-100 मिलियन लोग हैं। इस नीति रिपोर्ट में कहा गया है कि इन रोगियों में से लगभग 80% बच्चे हैं, जिनमें से अधिकांश उच्च रुग्णता और मृत्यु दर के कारण वयस्कता तक नहीं पहुँच पाते हैं।

स्रोत: द हिंदू, DRISTI IAS

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