सुकमा में माओवादी हमला | Sukma Me Naxali Hamla
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ के सुकमा-बीजापुर ज़िले की सीमा के पास टेरम क्षेत्र में सुरक्षा बलों के एक दल पर पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (People’s Liberation Guerilla Army- PLGA) की एक टुकड़ी द्वारा हमला किया गया, इसमें कई सुरक्षाकर्मी मारे गए और कुछ घायल हुए हैं।
- PLGA की स्थापना वर्ष 2000 में हुई थी। इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम,1967 के तहत प्रतिबंधित है।
प्रमुख बिंदु
सुकमा ज़िले के विषय में:
- यह ज़िला छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिणी सिरे पर स्थित है जिसे वर्ष 2012 में दंतेवाड़ा से अलग करके बनाया गया है।
- यह ज़िला अर्द्ध-उष्णकटिबंधीय वन से आच्छादित है और जनजातीय समुदाय गोंड (Gond) की मुख्य भूमि है।
- इस ज़िले से होकर बहने वाली एक प्रमुख नदी सबरी (Sabari- गोदावरी नदी की सहायक नदी) है।
- कुछ दशकों से यह क्षेत्र वामपंथी अतिवाद (Left Wing Extremism- LWE) गतिविधियों का मुख्य क्षेत्र बन गया है।
- इस क्षेत्र को ऊबड़-खाबड़ और मुश्किल भौगोलिक स्थानों ने LWE कार्यकर्ताओं के लिये एक सुरक्षित ठिकाना बना दिया।
भारत में वामपंथी अतिवाद:
- वामपंथी अतिवादियों को विश्व के अन्य देशों में माओवादियों के रूप में और भारत में नक्सलियों के रूप में जाना जाता है।
- भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से हुई और इसीलिये इस उग्रपंथी आंदोलन को ‘नक्सलवाद’ के नाम से जाना जाता है।
- ज़मींदारों द्वारा छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिये सत्ता के खिलाफ चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी द्वारा शुरू किये गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया।
- यह आंदोलन छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे कम विकसित पूर्वी भारत के राज्यों में फैल गया है।
- यह माना जाता है कि नक्सली माओवादी राजनीतिक भावनाओं और विचारधारा का समर्थन करते हैं।
- माओवाद, साम्यवाद का एक रूप है जो माओ त्से तुंग द्वारा विकसित किया गया है। इस सिद्धांत के समर्थक सशस्त्र विद्रोह, जनसमूह और रणनीतिक गठजोड़ के संयोजन से राज्य की सत्ता पर कब्ज़ा करने में विश्वास रखते हैं।
वामपंथी अतिवाद का कारण:
- आदिवासी असंतोष:
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 का उपयोग आदिवासियों को लक्षित करने के लिये किया गया है, जो अपने जीवन यापन हेतु वनोपज पर निर्भर हैं।
- विकास परियोजनाओं, खनन कार्यों और अन्य कारणों की वजह से नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में व्यापक स्तर पर जनजातीय आबादी का विस्थापन हुआ है।
- माओवादियों के लिये आसान लक्ष्य: ऐसे लोग जिनके पास जीवन जीने का कोई स्रोत नहीं है, उन्हें माओवादियों द्वारा आसानी से अपने साथ कर लिया जाता है।
- माओवादी ऐसे लोगों को हथियार, गोला-बारूद और पैसा मुहैया कराते हैं।
- देश की सामाजिक-आर्थिक प्रणाली में अंतराल:
- सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किये गए विकास के बजाय हिंसक हमलों की संख्या के आधार पर अपनी सफलता को मापती है।
- नक्सलियों से लड़ने के लिये मज़बूत तकनीकी बुद्धिमत्ता का अभाव है।
- उदाहरण के लिये ढाँचागत समस्याएँ, कुछ गाँव अभी तक किसी भी संचार नेटवर्क से ठीक से जुड़ नहीं पाए हैं।
- प्रशासन से कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं: यह देखा जाता है कि पुलिस द्वारा किसी क्षेत्र पर नियंत्रण किये जाने के बाद भी प्रशासन उस क्षेत्र के लोगों को आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने में विफल रहता है।
- नक्सलवाद से एक सामाजिक मुद्दे के रूप में निपटा जाए या सुरक्षा के खतरे के रूप में, इस पर अभी भी भ्रम बना हुआ है।
LWE से लड़ने की सरकारी पहल:
- ग्रेहाउंड: इसे वर्ष 1989 में एक विशिष्ट नक्सल विरोधी शक्ति के रूप में अपनाया गया था।
- ऑपरेशन ग्रीन हंट: यह वर्ष 2009-10 में शुरू किया गया था और इसके अंतर्गत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती की गई थी।
- LWE मोबाइल टॉवर परियोजना: LWE क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिये वर्ष 2014 में सरकार ने LWE प्रभावित राज्यों में मोबाइल टॉवरों की स्थापना को मंज़ूरी दी।
- आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: इस कार्यक्रम को वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य उन ज़िलों में तेज़ी से बदलाव लाना है जिन्होंने प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति की है।
- समाधान (SAMADHAN) का अर्थ है-
S- स्मार्ट लीडरशिप,
A- आक्रामक रणनीति,
M- प्रेरणा और प्रशिक्षण,
A- एक्शनेबल इंटेलिजेंस,
D- डैशबोर्ड आधारित KPI (मुख्य प्रदर्शन संकेतक) और KRA (मुख्य परिणाम क्षेत्र),
H- हार्नेसिंग टेक्नोलॉजी,
A- प्रत्येक रंगमंच के लिये कार्ययोजना,
N- फाइनेंसिंग तक कोई पहुँच नहीं। - यह सिद्धांत LWE समस्या के लिये वन-स्टॉप समाधान है। इसमें विभिन्न स्तरों पर तैयार की गई अल्पकालिक नीति से लेकर दीर्घकालिक नीति तक सरकार की पूरी रणनीति शामिल है।
आगे की राह
- हालाँकि हाल के दिनों में LWE हिंसा की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन ऐसे समूहों को खत्म करने के लिये निरंतर ध्यान देने और प्रयास करने की आवश्यकता है।
- सरकार को दो चीज़ सुनिश्चित करने की ज़रूरत है; शांतिप्रिय लोगों की सुरक्षा और नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों का विकास।
- केंद्र और राज्य सरकारों को विकास तथा सुरक्षा के मामले में अपने समन्वित प्रयासों को जरी रखना चाहिये, जहाँ केंद्र को राज्य पुलिस बलों के साथ एक सहायक भूमिका निभानी चाहिये।
- सरकार को सुरक्षाकर्मियों के जीवन के नुकसान को कम करने के लिये ड्रोन के उपयोग जैसे तकनीकी समाधान पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू, DRISTI IAS
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