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शफरी(SHAPHARI): जलकृषि के लिये प्रमाणन योजना

शफरी(SHAPHARI): जलकृषि के लिये प्रमाणन योजना

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ( MPEDA) ने 'शफरी'(SHAPHARI) नामक जलकृषि उत्पादों के लिये एक प्रमाणन योजना विकसित की है।

 प्रमुख बिंदु: 

परिचय:

  • शफ़री संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के जलकृषि के लिये प्रमाणीकरण दिशा-निर्देशों पर आधारित है।
    • ‘शफरी' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है-'बेहतर गुणवत्ता की मछली, जो एक मानव उपभोग के लिये उपयुक्त है।
  • यह  हैचरी (Hatchery) के लिये बाज़ार-आधारित उपकरण है जो उत्कृष्ट  जलीय कृषि को अपनाने और वैश्विक उपभोक्ताओं को आश्वस्त करने के लिये गुणवत्तायुक्त एंटीबायोटिक मुक्त झींगा उत्पादों का उत्पादन करने में मदद करेगा।

घटक और प्रक्रिया:

  • दो घटक:
    • अपने बीजों की गुणवत्ता के लिये हैचरी प्रमाणीकृत कराना 
      • हैचरी उन उद्यमियों को दो वर्ष की अवधि के लिये प्रमाणपत्र देता है जिन्होंने संचालन  प्रक्रिया के दौरान कई कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया हो ।
    • अपेक्षित उत्कृष्ट प्रणाली द्वारा झींगा की खेती को मंजूरी प्रदान करना।

 प्रक्रिया :

  • संपूर्ण प्रमाणन प्रक्रिया ऑनलाइन होगी जिसका उद्देश्य मानवीय त्रुटियों को कम करना तथा उच्च विश्वसनीयता और पारदर्शिता को स्थापित करना है। 

महत्त्व:

  • हैचरी के प्रमाणन से किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उत्पादकों को आसानी से पहचानने में मदद मिलेगी ।
  • प्रमाणन न केवल उपभोक्ताओं को एक सुरक्षित उत्पाद प्रदान करेगी बल्कि यह किसानों को बेहतर रिटर्न भी प्रदान करेगी साथ ही निर्यात खेपों के अस्वीकृत होने में कमी करेगी जिससे  निर्यात  में वृद्धि होगी।
  • भारत में फ्रोजेन झींगा उत्पाद,समुद्री खाद्य निर्यात के लिये सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।

भारत का झींगा निर्यात:

  • परिचय:
    •  भारत ने 2019-20 के दौरान अमेरिका और चीन को  5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के फ्रोजेन झींगा का निर्यात किया। भारतीय फ्रोजेन झींगा के लिये सबसे बड़ा बाज़ार अमेरिका है जिसके बाद दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोपीय संघ, चीन, जापान और मध्य पूर्व के देश हैं।
    • फ्रोजन झींगा भारत का सबसे बड़ा निर्यातित समुद्री खाद्य पदार्थ है । 
    • आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात और तमिलनाडु भारत के प्रमुख झींगा उत्पादक राज्य हैं, और जहाँ  से परिष्कृत झींगा उत्पादन का लगभग 95% निर्यात किया जाता है।
  • चिंताएँ:
    • खाद्य सुरक्षा संबंधित चिंताओं (खेपों में कमी और अन्य गतिविधियों) के कारण समुद्री खाद्य पदार्थ को खारिज कर दिया गया ।
    • एंटीबायोटिक अवशेषों की उपस्थिति के कारण भारतीय झींगा वाले खेपों को खारिज कर दिया गया है और यह निर्यातकों के लिये चिंता का विषय है।

निर्यात उत्पादों की खाद्य सुरक्षा के लिये अन्य पहल:

  • राष्ट्रीय अवशेष नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) 
    • राष्ट्रीय अवशेष नियंत्रण योजना (NRCP) यूरोपीय संघ के देशों को निर्यात के लिये एक वैधानिक शर्त  है ।
    • राष्ट्रीय अवशेष नियंत्रण कार्यक्रम (NRCP) MPEDA द्वारा कार्यान्वित और निगमित किया जाता है जो प्रत्येक वर्ष  एंटीबैक्टीरियल/पशु चिकित्सा औषधीय उत्पाद और पर्यावरण प्रदूषण जैसे पदार्थों के अवशेषों की निगरानी के लिये निश्चित नमूनाकरण अनुसूची और नमूना रणनीति बनाती है।
    • समुद्री राज्यों में स्थित हैचरी, चारा मिलों, एक्वाकल्चर फर्म और प्रसंस्करण संयंत्रों से नमूने एकत्र किये जाते हैं और किसी भी अवशेष/संदूषक की उपस्थिति के लिये परीक्षण किया जाता है ।

समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(MPEDA)

  • MPEDA राज्य के स्वामित्व वाली एक  नोडल एजेंसी है जो मत्स्य उत्पादन और संबद्ध गतिविधियों से जुड़ी हुई है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1972 में समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम (MPEDA), 1972 के तहत की गई थी ।
  • यह केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कार्य करता है ।
  • इसका मुख्यालय कोच्चि, केरल में है।
  • MPEDA की भूमिका समुद्री खाद्य पदार्थों के निर्यात को बढ़ाना है, जिसमें सभी प्रकार की मछलियों के  मानकों को निर्दिष्ट करना, विपणन, प्रसंस्करण, विस्तार और विभिन्न पहलुओं का प्रशिक्षण शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू, DRISTI IAS

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