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State of India’s Livelihood (SOIL) Report 2021: FPOs

स्टेट ऑफ इंडियाज़ लाइवलीहुड (SOIL) रिपोर्ट 2021: FPOs | State of India’s Livelihood (SOIL) Report 2021

चर्चा में क्यों?

‘स्टेट ऑफ इंडियाज़ लाइवलीहुड (SOIL) रिपोर्ट’ 2021 में कहा गया है कि पिछले सात वर्षों में केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत सिर्फ 1-5% किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को फंडिंग प्राप्त हुई है।

State of India’s Livelihood (SOIL) Report 2021
State of India’s Livelihood (SOIL) Report 2021

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के संबंध में:
    • एक्सेस डेवलपमेंट सर्विसेज़ नामक एक राष्ट्रीय आजीविका सहायता संगठन ने SOIL रिपोर्ट तैयार की है।
    • इसने केवल किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी- कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत FPO) का विश्लेषण किया है क्योंकि वे हाल के वर्षों में शुरू किये गए संगठनों का एक बड़ा बहुमत है।
      • सहकारी समितियों या समितियों के रूप में पंजीकृत FPO की संख्या बहुत कम है।
  • किसान उत्पादक संगठन (FPOs):
    • अवधारणा: 'किसान उत्पादक संगठन (FPO)' की अवधारणा में उत्पादकों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों का सामूहिकीकरण शामिल है ताकि सामूहिक रूप से कृषि की कई चुनौतियों जैसे- निवेश, प्रौद्योगिकी, इनपुट और बाज़ारों तक बेहतर पहुँच का समाधान करने के लिये एक प्रभावी गठबंधन बनाया जा सके। 
      • एफपीओ एक प्रकार का उत्पादक संगठन (PO) है जिसके सदस्य किसान होते हैं।
      • एक PO प्राथमिक उत्पादकों द्वारा गठित एक कानूनी इकाई है, अर्थात- किसान, दुग्ध उत्पादक, मछुआरे, बुनकर, ग्रामीण कारीगर, शिल्पकारों का समूह।
    • स्वैच्छिक संगठन: FPO अपने किसान-सदस्यों द्वारा नियंत्रित स्वैच्छिक संगठन हैं जो अपनी नीतियों को निर्धारित करने और निर्णय लेने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
      • ये उन सभी व्यक्तियों के लिये खुले होते हैं जो अपनी सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम हैं और बिना लैंगिक, सामाजिक, नस्लीय, राजनीतिक या धार्मिक भेदभाव के सदस्यता की ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करने के इच्छुक हैं।
    • शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना: FPO संचालक अपने किसान-सदस्यों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, प्रबंधकों और कर्मचारियों के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण सुविधा प्रदान करते हैं ताकि वे अपने FPO के विकास में प्रभावी रूप से योगदान कर सकें।
  • FPOs का महत्त्व:
    • औसत भूमि जोत का घटता आकार: औसत खेत का आकार वर्ष 1970-71 में 2.3 हेक्टेयर (हेक्टेयर) था जो वर्ष 2015-16 में घटकर 1.08 हेक्टेयर रह गया। लघु और सीमांत किसानों की हिस्सेदारी वर्ष 1980-81 में 70% थी जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर 86% हो गई।
      • FPOs किसानों को सामूहिक कृषि (Collective Farming) के लिये प्रेरित कर सकते हैं और छोटे आकार के खेतों की उत्पादकता के मुद्दों का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।
      • इसके परिणामस्वरूप खेती की बढ़ती गतिविधियों के कारण अतिरिक्त रोज़गार सृजन भी हो सकता है।
    • कॉरपोरेट्स के साथ बातचीत: FPOs किसानों को सौदेबाज़ी में बड़े कॉर्पोरेट उद्यमों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद कर सकते हैं, क्योंकि ये सदस्यों को एक समूह के रूप में बातचीत करने हेतु एक मंच प्रदान करते हैं और छोटे किसानों को इनपुट व आउटपुट दोनों बाज़ारों में मदद कर सकते हैं।
    • समुच्चय/समूहन का अर्थशास्त्र: FPO सदस्य किसानों को कम लागत और गुणवत्तापूर्ण इनपुट प्रदान कर सकता है। उदाहरण के लिये फसलों हेतु ऋण, मशीनरी की खरीद, इनपुट कृषि-आदान (उर्वरक, कीटनाशक आदि) और कृषि उपज की खरीद के बाद प्रत्यक्ष विपणन की सुविधा।
      • यह सदस्यों को समय पर लेन-देन लागत,मूल्यों में उतार-चढ़ाव, परिवहन, गुणवत्ता रखरखाव आदि के मामले में बचत करने में सक्षम बनाएगा।
    • सामाजिक प्रभाव: सामाजिक पूंजी FPOs के रूप में विकसित होगी, क्योंकि इससे FPOs में शामिल महिला किसानों का लेैगिक अनुपात और उनकी निर्णय लेने की क्षमता में सुधार हो सकता है।
      • यह सामाजिक संघर्षों को कम कर सकता है और समुदाय में भोजन एवं पोषण मूल्यों में सुधार कर सकता है।
  • FPOs का समर्थन:
    • संस्थानों/संसाधन एजेंसियों (RAs) को बढ़ावा: FPOs को आमतौर पर संस्थानों/संसाधन एजेंसियों (RAs) को बढ़ावा देकर संगठित किया जाता है।
      • लघु कृषक कृषि व्यवसाय संघ (SFAC) एफपीओ को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं।
      • संसाधन एजेंसियांँ, ​​राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक जैसी एजेंसियाँ सरकारों से उपलब्ध सहायता का लाभ उठाती हैं।
    • 10,000 एफपीओ का गठन और संवर्द्धन: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने केंद्रीय क्षेत्रक योजना के तहत '10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के गठन एवं संवर्द्धन' (FPOs) शीर्षक से केंद्रीय क्षेत्र की योजना शुरू की है।
    • इक्विटी अनुदान योजना: वर्ष 2014 से SFAC द्वारा तीन वर्ष की अवधि के भीतर दो चरणों में अधिकतम 15 लाख रुपए तक इक्विटी अनुदान की पेशकश की गई है।
      • पिछले सात वर्षों में सितंबर 2021 तक केवल 735 संगठनों को अनुदान दिया गया जो देश में वर्तमान में पंजीकृत कुल उत्पादक कंपनियों (PCs) का केवल 5% है।
    • क्रेडिट गारंटी योजना: यह उन बैंकों को ज़ोखिम कवर प्रदान करती है जो FPCs को 1 करोड़ रुपए तक के संपार्श्विक मुक्‍त सावधि ऋण (Advance Collateral-Free Loans) प्रदान करते हैं।
      • केवल 1% पंजीकृत निर्माता कंपनियांँ ही इसका लाभ उठा पाई हैं।
  •  FPOs के समक्ष चुनौतियाँ:
    • व्यावसायिक कौशल का अभाव: यद्यपि संसाधन एजेंसियों (RAs) में सामान्य रूप से सोशल मोबिलाइज़ेशन स्किल होती हैं लेकिन उनके पास व्यवसाय विकास और विपणन कौशल की कमी होती है जो एक व्यावसायिक इकाई के रूप में FPOs की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अनुपलब्ध आपूर्ति शृंखला संचालन क्षमताएँ: आपूर्ति शृंखला संचालन में प्रबंधन क्षमताओं, बाज़ार की गतिशीलता, लिंकेज की बारीकियाँ, बाज़ार की खुफिया जानकारी तथा FPOs की संरचना एवं कार्यप्रणाली में स्पष्टता और समरूपता का अभाव है
    • व्यावसायिक कौशल का अभाव: यद्यपि संसाधन एजेंसियों (RAs) में सामान्य रूप से सोशल मोबिलाइज़ेशन स्किल होती हैं लेकिन उनके पास व्यवसाय विकास और विपणन कौशल की कमी होती है जो एक व्यावसायिक इकाई के रूप में FPOs की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अनुपलब्ध आपूर्ति शृंखला संचालन क्षमताएँ: आपूर्ति शृंखला संचालन में प्रबंधन क्षमताओं, बाज़ार की गतिशीलता, लिंकेज की बारीकियाँ, बाज़ार की खुफिया जानकारी तथा FPOs की संरचना एवं कार्यप्रणाली में स्पष्टता और समरूपता का अभाव है
    • विभिन्न विकृतियाँ: वर्तमान प्रणाली कई बिचौलियों जैसी विकृतियों, ऊर्ध्वाधर एकीकरण की कमी (उत्पादन के दो या दो से अधिक चरणों की एक फर्म में संयोजन सामान्य रूप से अलग-अलग फर्मों द्वारा संचालित), कृषि वस्तुओं की आवाज़ाही पर खराब बुनियादी ढाँचे के प्रतिबंध आदि से ग्रस्त है।
    • सीमित बाज़ार विकल्प और पारदर्शिता की कमी: सीमित बाज़ार विकल्प और पारदर्शिता की कमी किसानों के लिये बेहतर मूल्य प्राप्ति में प्रमुख बाधाएँ रही हैं।
      • बिचौलियों के वर्तमान चक्रव्यूह को दरकिनार करते हुए सही बाज़ार खोजना महत्त्वपूर्ण है।
      • कई FPOs में आपूर्ति-शृंखला के संचालन के प्रबंधन और बिना बिके उत्पादों को संग्रहीत करने की क्षमता का अभाव है।

आगे की राह:

  • क्षमता निर्माण: FPOs को अन्य बातों के अलावा फंडिंग सुरक्षित रखने, ग्राहकों की पहचान और उनके साथ संबंध स्थापित करने, आंतरिक शासन प्रक्रियाओं को स्थापित करने की आवश्यकता है। इसके लिये उन्हें क्षमता निर्माण की आवश्यकता होती है ताकि वे स्टार्टअप चरण से विकास के साथ अंततः परिपक्वता की ओर बढ़ सकें।
  • पात्रता के लिये सीमा को कम करना: FPOs को इक्विटी अनुदान और ऋण प्रदान करने के लिये सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं का लाभ उठाने की प्रक्रिया को आसान बनाना आवश्यक है। यह पात्रता के लिये सीमा को कम करके या पात्रता मानदंड तक पहुँचने के लिये FPOs का समर्थन करके या दोनों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
  • संरचनात्मक मुद्दों से निपटना: कई FPOs में तकनीकी कौशल की कमी है, अपर्याप्त पेशेवर प्रबंधन, कमज़ोर वित्तीय स्थिति, ऋण, बाज़ार तथा बुनियादी ढाँचे तक अपर्याप्त पहुँच है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ, DRISTI IAS

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