जो हर रोज जाता था वो गीत हूं मैं... | Poem By Dr. Kumar Vishwas | कुमार विश्वास

मुझसे सुनो खूब गजलें, मधुर गीत
मुझसे मेरा मात्र परिचय न पूछो
कि तपती दुपहरी में छत पर अकेली
जो तुमको बुलाता था वो गीत हूं मैं
मुंह ढांपकर नर्म तकिये के भीतर
जो तुमको रुलाता था वो गीत हूं मैं
तुम्हारे ही पीछे जो कॉलेज से घर तक
जो हर रोज जाता था वो गीत हूं मैं...
जो तुमको बुलाता था वो गीत हूं मैं
मुंह ढांपकर नर्म तकिये के भीतर
जो तुमको रुलाता था वो गीत हूं मैं
तुम्हारे ही पीछे जो कॉलेज से घर तक
जो हर रोज जाता था वो गीत हूं मैं...
~ Dr. Kumar Vishwas
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