‘निजता का अधिकार’ और ‘भूल जाने का अधिकार’ | 'Right to Privacy' and 'Right to be Forgotten'
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अभिनेत्री द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें उसकी सहमति के बिना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपलोड किये गए वीडियो को हटाने का अनुरोध किया गया था।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महिला के निजता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिये।
- वहीं दूसरी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ने अपने ‘प्रकाशित करने के अधिकार’ का तर्क दिया है।
प्रमुख बिंदु
- निर्णय: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ‘निजता के अधिकार’ में ‘भूल जाने का अधिकार’ और ‘अकेले रहने का अधिकार’ भी शामिल है।
- निजता के अधिकार के बारे में: ‘पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ (वर्ष 2017) मामले में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
- ‘निजता का अधिकार’ संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन का अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है।
- ‘भूल जाने के अधिकार’ के विषय में: यह एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अपनी व्यक्तिगत जानकारी को इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से हटाने का अधिकार देता है, जब संबंधित व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है।
- ‘गूगल स्पेन मामले’ में ‘यूरोपीय संघ न्यायालय’ (CJEU) द्वारा वर्ष 2014 में दिये गए निर्णय के बाद से ‘भूल जाने के अधिकार’ का महत्त्व काफी अधिक बढ़ गया है।
- भारतीय संदर्भ में ‘पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ’ (2017) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘भूल जाने का अधिकार’ निजता के अधिकार का एक हिस्सा है।
- मूल तौर पर ‘भूल जाने का अधिकार’ अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार से और अनुच्छेद-14 के तहत गरिमा के अधिकार से उत्पन्न हुआ है।
- ‘अकेले रहने के अधिकार’ के बारे में: इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई व्यक्ति समाज से हट रहा है। यह एक प्रकार की अपेक्षा है कि समाज व्यक्ति द्वारा चुने गए विकल्पों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि वह दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाता।
- भूल जाने के अधिकार (RTBF) से संबंधित मुद्दे:
- गोपनीयता बनाम सूचना: किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।
- उदाहरण के लिये हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी को डी-लिंक करना चाहता हो और जब लोग उससे संबंधित जानकारी एकत्र करने हेतु गूगल पर सर्च करें तो उनके लिये कुछ पत्रकारिता रिपोर्ट तक पहुंँचना मुश्किल बना सकता है।
- यह अनुच्छेद 21 से प्राप्त व्यक्ति के अकेले रहने के अधिकार के सीधे मुद्दों पर रिपोर्ट करने के लिये अनुच्छेद 19 में वर्णित मीडिया के अधिकारों के साथ विरोधाभास है।
- निजी व्यक्तियों के खिलाफ प्रवर्तनीयता/प्रयोग: RTBF का उपयोग आमतौर पर एक निजी पार्टी (एक मीडिया या समाचार वेबसाइट) के खिलाफ किया जाएगा।
- इससे यह सवाल उठता है कि क्या निजी व्यक्ति के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू किया जा सकता है, जो आमतौर पर राज्य के खिलाफ लागू होता है।
- केवल अनुच्छेद 15(2), अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 23 एक निजी पार्टी/एकल स्वामित्व वाली किसी कंपनी को व्यक्तिगत अधिनियम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं जिसे संविधान के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी जाती है।
- अस्पष्ट निर्णय: हाल के वर्षों में डेटा संरक्षण कानून के बिना RTBF को संहिताबद्ध करने के लिये विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अधिकार के कुछ असंगत निर्णय दिये गए हैं।
- भारत में बार-बार न्यायालयों द्वारा RTBF के आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर दिया गया है, जबकि इससे जुड़े व्यापक संवैधानिक प्रश्नों को पूरी तरह से अनदेखा किया है।
- गोपनीयता बनाम सूचना: किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।
गोपनीयता की रक्षा के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019:
- व्यक्तिगत डेटा से संबंधित व्यक्तियों की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करना और उक्त उद्देश्यों तथा किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा से संबंधित मामलों के लिये भारतीय डेटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना करना।
- इसे बीएन श्रीकृष्ण समिति (2018) की सिफारिशों पर तैयार किया गया।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
- कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में यह कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने के प्रावधान हैं।
आगे की राह
- संसद और सर्वोच्च न्यायालय को RTBF के विस्तृत विश्लेषण में शामिल होना चाहिये और निजता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परस्पर विरोधी अधिकारों को संतुलित करने के लिये एक तंत्र विकसित करना चाहिये।
- इस डिजिटल युग में डेटा एक मूल्यवान संसाधन है जिसे अनियंत्रित नहीं छोड़ा जाना चाहिये। इस संदर्भ में भारत के लिये एक मज़बूत डेटा संरक्षण व्यवस्था सुनिश्चित करने का समय आ गया है।
- इसके लिये सरकार को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 के अधिनियमन में तेज़ी लानी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू, DRISTI IAS
Read Also पंचायती राज व्यवस्था क्या है? | पंचायती राज व्यवस्था का महत्व | पंचायती राज व्यवस्था पर निबंध
Read About ब्रेटन वुड्स समझौता और प्रणाली
Read Also सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल | Major sites of Indus Valley Civilization In Hindi
Education
,
News
Read About ब्रेटन वुड्स समझौता और प्रणाली
Read Also सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल | Major sites of Indus Valley Civilization In Hindi
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box.