25 दिसंबर, 2019 को प्रधानमंत्री द्वारा निम्न भूमि जल स्तर वाले क्षेत्रों में भूजल संरक्षण के लिये ‘अटल भूजल योजना’ प्रारंभ की गई है।
वित्तीय प्रारूप:
- इस योजना का कुल परिव्यय 6000 करोड़ रुपए है तथा यह पाँच वर्षों की अवधि (2020-21 से 2024-25) के लिये लागू की जाएगी।
- 6000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय में 50 प्रतिशत विश्व बैंक ऋण के रूप में होगा, जिसका भुगतान केंद्र सरकार करेगी।
- बकाया 50 प्रतिशत नियमित बजटीय सहायता से केंद्रीय सहायता के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा। राज्यों को विश्व बैंक का संपूर्ण ऋण और केंद्रीय सहायता अनुदान के रूप में उपलब्ध कराई जाएगी।
उद्देश्य
- इस योजना का उद्देश्य चिन्हित प्राथमिकता वाले 7 राज्यों- गुजरात, हरियाण, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जनभागीदारी के माध्यम से भू-जल प्रबंधन में सुधार लाना है।
- इस योजना के कार्यान्वयन से इन राज्यों के 78 ज़िलों में लगभग 8350 ग्राम पंचायतों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
- यह योजना मांग पक्ष प्रबंधन पर प्राथमिक रूप से ध्यान देते हुए ग्राम पंचायतों में भू-जल प्रबंधन तथा व्यवहार्य परिवर्तन को बढ़ावा देगी।
अटल जल के दो प्रमुख घटक हैं–
- संस्थागत मज़बूती और क्षमता निर्माण घटक:
- राज्यों में स्थायी भू-जल प्रबंधन के लिये संस्थागत प्रबंधनों को मजबूत बनाने के लिये नेटवर्क निगरानी और क्षमता निर्माण में सुधार तथा जल उपयोगकर्त्ता समूहों को मजबूत बनाना।
- डेटा विस्तार, जल सुरक्षा योजनाओं को तैयार करना, मौजूदा योजनाओं के समन्वय के माध्यम से प्रबंधन प्रयासों को लागू करना।
- मांग पक्ष प्रबंधन प्रक्रियाओं को अपनाने के लिये राज्यों को प्रोत्साहन देने हेतु घटक:
प्रभाव:
- स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी से परियोजना क्षेत्र में जल जीवन मिशन के लिये संसाधनों की निरंतरता।
- किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य में योगदान मिलेगा।
- भागीदारी भू-जल प्रबंधन को बढ़ावा मिलेगा।
- बड़े पैमाने पर परिष्कृत जल उपयोग निपुणता और उन्नत फसल पद्धति को बढ़ावा।
- भू-जल संसाधनों के निपुण और समान उपयोग तथा समुदाय स्तर पर व्यवहार्य परिवर्तन को बढ़ावा।
पृष्ठभूमि
भू-जल देश के कुल सिंचित क्षेत्र में लगभग 65 प्रतिशत और ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में लगभग 85 प्रतिशत योगदान देता है। बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की बढ़ती हुई मांग के कारण देश के सीमित भू-जल संसाधन खतरे में हैं। अधिकांश क्षेत्रों में व्यापक और अनियंत्रित भू-जल दोहन से इसके स्तर में तेज़ी से और व्यापक रूप से कमी होने के साथ-साथ भू-जल पृथक्करण ढाँचों की निरंतरता में गिरावट आई है। देश के कुछ भागों में भू-जल की उपलब्धता में गिरावट की समस्या को भू-जल की गुणवत्ता में कमी ने और बढ़ा दिया है। अधिक दोहन, अपमिश्रण और इससे जुड़े पर्यावरणीय प्रभावों के कारण भू-जल पर पड़ते दबाव के कारण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा खतरे में पहुँच गई है। इसके लिये आवश्यक सुधारात्मक, उपचारात्मक प्रयास प्राथमिकता के आधार पर किये जाने की ज़रूरत है।
जल शक्ति मंत्रालय के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग ने अटल भू-जल योजना के माध्यम से देश में भू-जल संसाधनों की दीर्घकालीन निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये एक अग्रणीय पहल की है, जिसमें विभिन्न भू-आकृतिक, जलवायु संबंधी, जल भू-वैज्ञानिक और सांस्कृतिक स्थिति के पहलुओं का प्रतिनिधित्व करने वाले 7 राज्यों में पहचान किये गए भू-जल की कमी वाले प्रखंडों में ‘टॉप-डाउन’ और ‘बॉटम अप’ का मिश्रण अपनाया गया है। अटल जल को भागीदारी भू-जल प्रबंधन तथा निरंतर भू-जल संसाधन प्रबंधन के लिये समुदाय स्तर पर व्यवहार्य परिवर्तन लाने के लिये संस्थागत ढाँचे को मजबूत बनाने के मुख्य उद्देश्य के साथ तैयार किया गया है। इस योजना में जागरूकता कार्यक्रमों, क्षमता निर्माण, मौजूदा और नई योजनाओं के समन्वय तथा उन्नत कृषि प्रक्रियाओं सहित विभिन्न उपायों के माध्यम से इन उद्देश्यों को प्राप्त करने की कल्पना की गई है।
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