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चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 | The Election Laws (Amendment) Bill, 2021

चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 | The Election Laws (Amendment) Bill, 2021

चर्चा में क्यों?

The Election Laws (Amendment) Bill, 2021
The Election Laws (Amendment) Bill, 2021


हाल ही में लोकसभा में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया गया। यह विधेयक मतदाता सूची डेटा और मतदाता पहचान पत्र को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ने का प्रयास करता है।

  • हालाँकि विपक्षी सदस्यों ने विधेयक पर कई आपत्तियाँ जताई हैं।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
    • निर्वाचक नामावली का ‘डी-डुप्लीकेशन’: यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 में संशोधन का प्रावधान करता है, जिससे मतदाता सूची डेटा को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ा जा सके।
      • इसका उद्देश्य विभिन्न स्थानों पर एक ही व्यक्ति के एकाधिक नामांकन को रोकना है।
      • इससे फर्जी वोटिंग और फर्जी मतों को रोकने में मदद मिलेगी।
      • यह लिंकिंग विभाग से संबंधित व्यक्तिगत, लोक शिकायत और कानून तथा न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की 105वीं रिपोर्ट के अनुरूप है।
    • मल्टीपल क्वालिफाइंग डेट्स: नागरिकों को 18 वर्ष कि आयु में वोटिंग का अधिकार मिल जाता है। हालाँकि 18 वर्ष की आयु के बाद भी कई लोग मतदाता सूची से बाहर रह जाते हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि 1 जनवरी को क्वालीफाइंग तारीख के रूप में माना जाता है।
      • विधेयक के अनुसार, वोटिंग रोल को अपडेट करने के लिये चार क्वालिफाइंग तारीखों की घोषणा की जाएगी, जिसमें जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों के पहले दिन 18 वर्ष के हो चुके लोगों को शामिल किया जाएगा।
    • लैंगिक तटस्थता लाना: 'सेवा मतदाताओं की पत्नियों' के पंजीकरण की भाषा को अब 'जीवन साथी' से बदल दिया जाएगा। यह कानूनों को और अधिक "लिंग-तटस्थ" बना देगा।
      • सेवा मतदाता वे हैं जो सशस्त्र बलों में सेवारत हैं या इसके बाहर राज्य के सशस्त्र पुलिस बल में सेवारत हैं या भारत के बाहर तैनात सरकारी कर्मचारी हैं।
  • संबद्ध चिंताएँ:
    • आधार अपने आप में अनिवार्य नहीं है: वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के कदम को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
      • उस समय यह माना गया कि "आधार कार्ड योजना विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक है"
      • इसके अलावा आधार का मतलब केवल यही था कि यह निवास का प्रमाण है नागरिकता का नहीं।
    • बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित होने का भय: विधेयक मतदाता पंजीकरण अधिकारियों को आवेदक की पहचान स्थापित करने हेतु मतदाता के रूप में पंजीकरण करने के इच्छुक आवेदकों के आधार नंबर मांगने की अनुमति देता है।
      • आधार के अभाव में सरकार कुछ लोगों को मताधिकार से वंचित करने और नागरिकों की प्रोफाइल बनाने के लिये मतदाता पहचान विवरण का उपयोग करने में सक्षम होगी।
    • डेटा संरक्षण कानून का अभाव: विशेषज्ञों का मानना है कि एक मज़बूत व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून (इस संबंध में एक विधेयक को संसद द्वारा अभी तक मंज़ूरी नहीं दी गई है) के अभाव में डेटा साझा करने की अनुमति देने का कोई भी कदम समस्या उत्पन्न कर सकता है।
    • निजता संबंधी चिंताएँ: वर्तमान में चुनावी डेटा को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा अपने डेटाबेस में रखा जाता है, जिसकी अपनी सत्यापन प्रक्रिया होती है और यह अन्य सरकारी डेटाबेस से अलग होती है।
      • आधार और चुनाव संबंधी डेटाबेस के बीच प्रस्तावित लिंकेज ECI और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को डेटा उपलब्ध कराएगा।
      • इससे नागरिकों की निजता का हनन हो सकता है।
  • सरकार का रुख:
    • स्वैच्छिक लिंकिंग: आधार और चुनाव डेटाबेस के बीच प्रस्तावित लिंकेज स्वैच्छिक है।
    • मताधिकार से वंचित होने का कोई जोखिम नहीं: मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिये किये किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और किसी व्यक्ति द्वारा आधार संख्या प्रस्तुत करने या सूचित करने में असमर्थता की स्थिति में मतदाता सूची से कोई भी प्रविष्टि नहीं हटाई जाएगी।

आगे की राह 

  • व्यापक कानून की आवश्यकता: एक त्रुटि मुक्त मतदाता सूची स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये अनिवार्य है। यद्यपि सरकार को चाहिये कि वह इसके लिये व्यापक विधेयक प्रस्तुत करे ताकि  संसद में इस मुद्दे पर उचित चर्चा हो सके।
  • अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता: विधेयक में दो डेटाबेस के बीच डेटा साझाकरण की सीमा, ऐसे तरीके जिनके माध्यम से सहमति प्राप्त की जाएगी और क्या डेटाबेस को जोड़ने के लिये सहमति रद्द की जा सकती है, जैसी बातों को निर्दिष्ट किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, DRISTI IAS

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